केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का 74 वर्ष की आयु में गुरुवार शाम दिल्ली में निधन हो गया। वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे और हाल ही में उनकी हर्ट सर्जरी हुई थी। उनके बेटे और एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने राम विलास पासवान के निधन की पुष्टि की है। चिराग ने अपने ट्वीट में लिखा, “पापा, अब आप इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन मुझे पता है कि आप जहां भी हैं, हमेशा मेरे साथ हैं।”
रामविलास पासवान के निधन की खबर आते ही दिल्ली से लेकर बिहार तक शोक की लहर दौड़ गई है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, बिहार के सीएम नीतिश कुमार, पूर्व सीएम राबड़ी देवी समेत तमाम नेताओं और सामाजिक हस्तियों ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। सभी ने एक सुर में कहा कि रामविलास पासवान के निधन के साथ राजनीति का एक विशाल व्यक्तित्व दुनिया से चला गया।
इस बात में सच्चाई भी है। रामविलास पासवान बिहार की राजनीति का एक विशाल स्तंभ थे। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव मजाक में यूं ही नहीं उन्हें चुनाव का मौसम वैज्ञानिक कहते थे। दरअसल रामविलास पासवान अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा सत्ता के करीब रहे। इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने देश के छह प्रधानमंत्रियों के साथ कैबिनेट में काम किया। जनता दल से अलग होने के बाद जब से उन्होंने अपनी पार्टी एलजेपी बनाई तभी से वह पिछले 20 साल से केंद्र की सत्ता में भागीदार रही है।
शुरुआती जीवन की बात करें तो रामविलास पासवान का जन्म बिहार के खगड़िया में हुआ था। छात्र राजनीति में सक्रिय रहे रामविलास पासवान बिहार में जयप्रकाश नारायण के समाजवादी आंदोलन से उभरे थे। वह साल 1969 में पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट निर्वाचित हुए। उसके बाद जब 1974 में लोक दल बना तो रामविलास पासवान उसमें शामिल हो गए। इसके बाद जेपी आंदोलन में शामिल हुए और 1975 के आपातकाल का विरोध करते हुए जेल भी गए।
जेल से आने के बाद रामविलास पासवान का दिल्ली का सफर शुरू हो गया। वह साल 1977 में पहली बार जनता पार्टी की टिकट पर बिहार की हाजीपुर सीट से रिकॉर्ड 5 लाख से ज्यादा वोट से जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1980 के लोकसभा चुनाव में भी पासवान ने इसी सीट से दोबारा जीत हासिल की। तीसरी बार 1989 में लोकसभा के लिए चुने गए और केंद्र की वीपी सिंह सरकार में पहली बार कैबिनेट में शामिल हुए। उन्हें श्रम कल्याण मंत्री बनाया गया था।
इसके बाद पासवान फिर दिल्ली में जम गए। फिर 1996 से 1998 तक संयुक्त मोर्चा की सरकार में एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल की कैबिनेट में मंत्री बनाए गए। उन्हें रेल मंत्रालय दिया गया था। इसके बाद 1999 से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी केंद्र में मंत्री रहे। वाजपेयी के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में आई यूपीए की सरकार में भी रामविलास पासवान कैबिनेट में मंत्री बनाए गए। इसके बाद 2014 से वह बीजेपी के नेतृत्व में मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।
वैसे तो रामविलास पासवान हमेशा सत्ता के साथ रहने के कारण राजनीति के मौसम विज्ञानी कहे जाते थे, लेकिन अपने राजनीतिक सफर के दौरान एक बार वह संभवतः बिहार का मुख्यमंत्री बनने से चूक भी गए थे। यह घटना 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त की है। चुनाव के लिए नीतीश कुमार ने पासवान से लालू प्रसाद यादव के खिलाफ मिलकर लड़ने का ऑफर दिया था। यहां तक कि नीतीश ने तब पासवान को सीएम पद का भी ऑफर दिया था। हालांकि, पासवान तब यूपीए-1 सरकार में केंद्रीय मंत्री थे। लेकिन उस समय पासवान ऐसे किसी दल के साथ गठबंधन नहीं करना चाहते थे, जो बीजेपी के साथ हो और उन्होंने इनकार कर दिया था। इसके बाद से दोनों नेता किसी विधानसभा चुनाव में साथ नहीं लड़े।
Bengaluru, November 22, 2024: In recent years, momentum as an investment strategy has gained significant traction in India, as investors increasingly seek to capitalize...