कंगना रनौत ने मुंबई पहुंचकर बीएमसी की कार्रवाई पर कहा है कि आज उनका घर टूटा है तो कल उद्धव ठाकरे का घमंड टूटेगा.
कंगना ने ये बात अपने ट्विटर अकाउंट से एक वीडियो जारी करते हुए कही है.
जहां एक ओर कंगना की इस प्रतिक्रिया से महाराष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ उनका रुख़ नर्म होता नहीं दिख रहा है.
वहीं, कंगना ने इस वीडियो में सीधे उद्धव ठाकरे को निशाने पर लिया है जो कि एक अहम बात है.
उन्होंने कहा है, “उद्धव ठाकरे तुझे क्या लगता है तूने फ़िल्म माफ़िया के साथ मेरा घर तोड़ कर मुझसे बहुत बड़ा बदला लिया है. आज मेरा घर टूटा है कल तेरा घमंड टूटेगा. ये वक़्त का पहिया है याद रखना हमेशा एक जैसा नहीं रहता और मुझे लगता है तुमने मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है. मुझे पता था कि कश्मीरी पंडितों पर क्या बीती होगी. आज मैंने महसूस किया है. आज मैं इस देश को वचन देती हूं कि मैं अयोध्या पर ही नहीं कश्मीर पर भी एक फ़िल्म बनाऊंगी. और अपने देशवासियों के जगाऊंगी क्योंकि मुझे पता था कि ये हमारे साथ होगा तो लेकिन ये मेरे साथ हुआ है. इसका कोई मतलब है, कोई मायने है. उद्धव ठाकरे अच्छा हुआ ये कि ये क्रूरता मेरे साथ हुई क्योंकि इसके कुछ मायने हैं…जय हिंद, जय महाराष्ट्र”
इसके बाद महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि ये जो कुछ हुआ है, वो महाराष्ट्र के इतिहास में पहली बार हुआ है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि आख़िर कंगना ने जिस अंदाज़ में उद्धव ठाकरे को निशाने पर लिया है, उसके पीछे क्या वजह हो सकती है.
शिव सेना और महाराष्ट्र की राजनीति को क़रीब से देखने वालीं वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन कहती हैं, “मैं 110 फ़ीसदी मानती हूँ कि कंगना को बीजेपी का भारी समर्थन हासिल है. अगर ऐसा नहीं होता तो ये संभव ही न होता कि वह उद्धव ठाकरे के बारे में इस तरह से बात कर पातीं. मैं ये भी मानती हूँ कि कंगना ये सब करते हुए खुद में आश्वस्त होंगी कि उन्हें राज्य सभा का टिकट मिल जाए. क्योंकि अब उन्होंने जो किया है, उसके बाद भले ही शिव सेना सीधे उन पर हमला न करे लेकिन वह बॉलीवुड और सरकारी अमले के माध्यम से उन्हें घेरने की कोशिश करेगी. इतिहास गवाह है कि शिव सेना के बॉलीवुड से बहुत ही गहरे संबंध रहे हैं और ये उनका तरीका है कि किसी को ख़त्म करना है तो उसे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग – थलग करके ख़त्म करो.”
हालांकि, कंगना रनोट किसी भी पॉलिटिकल पार्टी से संबंध होने या राजनीति में जाने की योजनाओं का खंडन कर चुकी हैं.
कंगना ने बीबीसी की एक ख़बर पर टिप्पणी करते हुए एक दिन पहले भी अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा था कि “कंगना रनौत न तो एक मोहरा हैं और न ही एक खिलाड़ी. और वो व्यक्ति आज तक पैदा नहीं हुआ है जो कि उन्हें मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर सके.”
कंगना के घर को तोड़े जाने की जहां बीजेपी आलोचना कर ही रही है वहीं इस कदम की आलोचना कांग्रेस नेताओं की ओर से भी होने लगी है.
कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने ट्वीट करके लिखा है, “कंगना का ऑफिस अवैध था या उसे डिमॉलिश करने का तरीका? क्योंकि हाई कोर्ट ने कार्रवाई को गलत माना और तत्काल रोक लगा दी. पूरा एक्शन प्रतिशोध से ओत-प्रोत था. लेकिन बदले की राजनीति की उम्र बहुत छोटी होती है. कहीं एक ऑफिस के चक्कर में शिवसेना का डिमॉलिशन न शुरू हो जाए!”
इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने कंगना रनौत के घर/दफ़्तर तोड़े जाने के बाद बीएमसी की कार्रवाई पर स्टे दे दिया है. सोशल मीडिया पर इसे कंगना की जीत के रूप में देखा गया, लेकिन इससे पहले बुधवार की सुबह कंगना की ओर से घर तोड़े जाने की तस्वीर ट्वीट की गई.
कंगना ने अपने ट्वीट में लिखा था, “मणिकर्णिका फ़िल्म्ज़ में पहली फ़िल्म अयोध्या की घोषणा हुई, यह मेरे लिए एक इमारत नहीं राम मंदिर ही है, आज वहाँ बाबर आया है, आज इतिहास फिर खुद को दोहराएगा राम मंदिर फिर टूटेगा मगर याद रख बाबर यह मंदिर फिर बनेगा यह मंदिर फिर बनेगा, जय श्री राम, जय श्री राम, जय श्री राम…”
कंगना ने ट्वीट करके बताया था कि उनके घर में किसी तरह का अवैध निर्माण नहीं किया गया है.
उन्होंने ट्वीट में लिखा, “मेरे घर में किसी तरह का अवैध निर्माण नहीं हुआ है. इसके साथ ही सरकार ने कोविड के दौरान 30 सितंबर तक किसी भी तरह की ध्वस्त करने वाली कार्रवाइयों पर रोक लगा रखी थी. ‘बुलीवुड’ अब देखिए कि फ़ासीवाद कुछ ऐसा दिखता है.”
इसके बाद कंगना रनौत के वकील रिज़वान सिद्दीकी ने बीएमसी की कार्रवाई के ख़िलाफ़ बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था.
कई लोग बीएमसी के इस कदम को बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश का भी उल्लंघन मान रहे हैं जिसके तहत 30 सितंबर तक सभी तरह की डेमोलिशन ड्राइव पर प्रतिबंध लगाया गया था.
वहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट में जीत के बाद और उससे पहले से भी सोशल मीडिया पर कंगना को समर्थन मिलता दिख रहा है.
रेसलर बबिता फोगाट ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है, “गीदड़ की जब मौत आती है तो फिर वह शहर की तरफ़ भागता है यही हाल शिवसेना का है कंगना राणावत बहन डरने वाली नहीं है. जब पूरा देश उनके साथ है तो ऑफिस फिर बन जाएगा लेकिन शिवसेना की औकात का पता चल गया. बहन डरना नहीं है पूरा देश आपके साथ खड़ा है.”
कंगना ने अपने ट्वीट्स के साथ जिस हैशटैग का इस्तेमाल किया है, वह इस समय शीर्ष स्थान पर है.
क्या बीएमसी ने लिया बदला?
इस पूरे मामले में बीएमसी के ऊपर ये आरोप लग रहा है कि उसने ये कार्रवाई बदले की भावना से प्रेरित होकर की है.
बीएमसी पर आरोप लगाने वालों का तर्क है कि इससे पहले शाहरूख ख़ान से लेकर कपिल शर्मा जैसी हस्तियों के ख़िलाफ़ भी बीएमसी ने कार्रवाई की है, लेकिन 24 घंटे जैसा फरमान जारी करके अगले दिन तोड़फोड़ का काम नहीं किया गया जो कि कंगना के मामले में किया गया है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई इसे पूरी तरह से बदले की भावना से प्रेरित कार्रवाई मानते हैं.
वे कहते हैं, “ये तो पूरी तरह सही है कि कंगना रनोट के ख़िलाफ़ बीएमसी ने जो कार्रवाई की है, उसमें बदले की भावना नज़र आती है. क्योंकि मुंबई में तमाम ऐसी इमारते हैं जहां अवैध निर्माण किया गया है. वहां इस तरह की कार्रवाई नहीं होती है.”
शिव सेना की राजनीति को बेहद क़रीब से समझने वाली वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन भी इसे एक बदले की कार्रवाई मानती हैं.
सुजाता आनंदन मानती हैं कि ये पहली बार नहीं हो रहा है जब बीएमसी ने अपनी बुराई करने वालों के ख़िलाफ़ इस हथकंडे का इस्तेमाल किया हो.
वे कहती हैं, “ये पहला मामला नहीं है कि बीएमसी ऐसा कुछ कर रही हो. इससे पहले जब आरजे मलिष्का ने मुंबई के गढ्ढों वाली सड़क को लेकर एक गाना बनाया था तब भी बीएमसी ने इसी तरह की प्रतिक्रिया दी थी.”
पर्दे के पीछे कौन?
लेकिन वह ये भी मानती हैं कि ये शिव सेना की स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं है.
वे कहती हैं, “मैं जितना शिव सेना को समझती हूं, उसके मुताबिक़ बीएमसी ने जो कुछ किया है, वो शिव सेना की स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं है. शिव सेना की स्वाभाविक प्रतिक्रिया ये होती कि वह कुछ अराजक तत्वों को भेजकर कंगना के दफ़्तर पर तोड़फोड़ करवा देती. लेकिन बीएमसी ने जिस ढंग से कंगना के ख़िलाफ़ कार्रवाई की है, वो बताता है कि शरद पवार की इसमें बड़ी भूमिका है क्योंकि पवार को अपने दुश्मनों से क़ानूनी परिधि में रहते हुए निपटने के लिए जाना जाता है.”
“अब तक शिव सेना की ओर से किसी तरह की अराजकता नहीं फ़ैलाई गई है तो वो इसलिए है क्योंकि शरद पवार ने इसकी इजाज़त नहीं दी है. और उद्धव ठाकरे भले ही इस सरकार के मुख्यमंत्री हों लेकिन इसके असली नेता शरद पवार ही हैं. संजय राउत एक मौके पर ये कह भी चुके हैं कि इस सरकार के हेडमास्टर पवार ही हैं. ऐसे में ये जो कुछ हो रहा है, उस पर पवार की छाप नज़र आती है.”
महाराष्ट्र की राजनीति को क़रीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत देसाई मानते हैं कि कंगना भी एक तरह से उकसाने का काम कर रही हैं.
वह कहते हैं, “कंगना ने जिस तरह से बाबर आदि शब्दों का इस्तेमाल किया है, वो साफ़ बताता है कि कंगना ने भी राजनीतिक भाषा का इस्तेमाल किया है. वह भी उकसाने वाली भाषा में बात कर रही हैं. और ऐसा लग रहा है कि अभी शिव सेना कंगना रनोट के ख़िलाफ़ कुछ और आक्रामक कदम भी उठा सकती है. लेकिन एक बात तय है कि ये मामला आगे ही बढ़ेगा.”
कोल्ड वॉर में फंसी कंगना?
विशेषज्ञ मानते हैं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना गठबंधन की सरकार बनने के बाद से बीजेपी और शिव सेना के बीच एक तरह का कोल्ड वॉर जारी है.
इस कथित कोल्ड वॉर में बीएमसी ने कंगना रनौत का घर/दफ़्तर तोड़ दिया है. इस घटना के बाद ये जंग तीखी बयानबाजी से ऊपर उठकर आक्रामक कार्रवाइयों तक पहुंच गई है.
ऐसे में सवाल उठता है कि अब इस मामले में आगे क्या होगा.
सुजाता आनंदन मानती हैं कि अगर कंगना ने महाराष्ट्र सरकार के ख़िलाफ़ अपने व्यवहार में नरमी नहीं दिखाई तो ये सब यूँ ही जारी रहेगा.
वे कहती हैं, “इस बात में दो राय नहीं है कि ये जंग ऐसे ही जारी रहेगी. बीजेपी अगले पाँच सालों तक ठाकरे परिवार को अपने निशाने पर रखेगी. लेकिन सवाल अगर ये है कि ये हाई डेसिबल बयानबाजी कब तक जारी रहेगी तो इसका जवाब दो शब्दों में दिया जा सकता है. और ये दो शब्द हैं – बिहार चुनाव.”