केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया, ‘गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि एसडीआरफ फंड के पैसों से लॉकडाउन की वजह से फंसे प्रवासी मजदूरों समेत सभी बेघर लोग जो रिलीफ कैंपों में हैं, के लिए अस्थायी तौर पर ठहरने, रहने, खाने, कपड़े, दवा, इलाज आदि का अस्थायी इंतजाम करें।’
गृह मंत्रालय में जॉाइंट सेक्रटरी पुण्य सलीला श्रीवास्तव ने बताया कि मंत्रालय ने सभी राज्यों से रिलीफ कैंप बनाने का अनुरोध किया है। उन्होंने बताया, ‘हमने प्रवासी मजदूरों के खाने और पानी की व्यवस्था के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से रिलीफ कैंप बनाने का अनुरोध किया है।’ उन्होंने कहा कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इन इंतजामों को लेकर वॉलंटियर्स, एनजीओ वगैरह के जरिए जागरूकता भी फैलानी चाहिए।
इस बीच गृह मंत्री अमित शाह ने नैशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड के तहत 8 राज्यों के लिए अतिरिक्त 5,551 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं। ये राज्य 2019 के दौरान बाढ़, भूस्खलन, तूफान, सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझे थे।
लॉकडाउन की वजह से ट्रांसपोर्ट के सारे साधन बंद हैं। दूसरे राज्यों से रोजी-रोटी के लिए शहरों में गए दिहाड़ी मजदूरों, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और गरीबों को इस बात की चिंता सताने लगी कि वे लॉकडाउन के दौरान कैसे खाएंगे, पीएंगे क्योंकि रोजगार तो छिन गया है। लिहाजा भूखों मरने के डर से बड़ी तादाद में मजदूरों का जगह-जगह तमाम शहरों से पैदल ही अपने घरों के लिए निकलना जारी है।
वैसे तो लॉकडाउन का उद्देश्य सोशल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित करना है ताकि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोके। लेकिन इन बेबस, बेरोजगार मजदूरों के पलायन से लॉकडाउन अपने उद्देश्यों में ही नाकाम होता दिख रहा है और वायरस के संक्रमण का खतरा भी बढ़ रहा है। पलायन कर रहे मजदूरों की एक तरफ भूख से जंग है तो दूसरी तरफ कोरोना से।