नई दिल्ली: मशहूर शायर पद्मश्री से सम्मानित आनंद मोहन जुत्शी (गुलज़ार देहलवी) का शुक्रवार को निधन हो गया, उनकी शायरी के मुरीद जवाहरलाल नेहरू भी हुआ करते थे। गुलज़ार साहब ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. और एल.एल.बी. की पढ़ाई पूरी की। उर्दू शायरी और साहित्य में उनके योगदानों को देखते हुए उन्हें ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से नवाजा गया। 2009 में उन्हें ‘मीर तकी मीर’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

बीते सात जून को उनकी कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट दोबारा निगेटिव आयी थी जिसके बाद उन्हें अस्पताल से  घर वापस लाया गया.उनके बेटे अनूप जुत्शी ने कहा, ‘सात जून को उनकी कोरोना वायरस की जांच रिपोर्ट दोबारा निगेटिव आयी जिसके बाद हम उन्हें घर वापस लाये. आज लगभग दोपहर ढाई बजे हमने खाना खाया और उसके बाद उनका निधन हो गया.’

उन्होंने कहा, ‘वह काफी बूढ़े थे और संक्रमण के कारण काफी कमजोर भी हो गए थे. डॉक्टरों का मानना है कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा होगा.’

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर लिखा, ‘दिल्ली के मशहूर शायर आनंद मोहन ‘गुलज़ार देहलवी’ जी नहीं रहे. 93 उम्र में भी वो उर्दू अकादमी के हर मुशायरे में जोश और प्रेम से आते रहे. दिल्ली की गंगा जमुनी तहज़ीब की हाज़िर मिसाल को नमन.

गुलज़ार देहलवी यानि पंडित आनंद मोहन जुत्शी की शायरी में हमेशा गंगा-जमुनी तहजीब की झलक मिलती है। उनकी ज़बान उर्दू है और उसी भाषा में गुलज़ार साहब की लेखनी ने लोगों के दिलों को छुआ।

गुलज़ार साहब का सम्बन्ध कश्मीर से है लेकिन वे दिल्ली में ही रहे। मौजूदा समय में नोयडा में उनका आवास है। उर्दू की दुनिया में देहलवी जी का महत्वपूर्ण हस्तक्षेप रहा है, शायरी को उन्होंने अलग ऊंचाई दी। 7 जुलाई 1926 जन्मे गुलज़ार साहब ने बचपन में ही शायरी की शुरुआत कर दी थी।

निगाह-ओ-ज़ुल्फ़ अगर कुफ्र है तो ईमां रुख़
शराब उनको अता की किताब के साथ

अब कहां तुम दस्त-ए-नाज़ुक से उठाअगे कमां
लाओ मैं रख लूं कलेजे में तुम्हारे तीर को

वो कहते हैं ये मेरा तीर है ज़ां ले के निकलेगा
मैं कहता हूं ये मेरी जान है मुश्किल से निकलेगी।

उम्र जो बे-ख़ुदी में गुज़री है.
बस वही आगही में गुज़री है.

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