कोरबा (आईपी न्यूज)। राज्य के कैप्टिव विद्युत संयंत्रों सीपीपी के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है। एक जानकारी के अनुसार हाल ही में पूरे देश में विद्युत संयंत्रों के कोल स्टॉक में बढ़ोतरी 131 मीट्रिक टन प्रति मेगावॉट के स्तर पर पहुंच गई, लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य में विद्युत संयंत्रों का औसतन कोल स्टॉक 48 मीट्रिक टन प्रति मेगावॉट के स्तर पर ही है।
सीपीपी इकाइयों में पर्याप्त मात्रा में कोयला की उपलब्धता नहीं होने के परिणामस्वरूप उनके लाभार्जन और स्थायित्व पर प्रतिकूल असर होगा। विगत 5 सालों में बिजली की लागत 100 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। कोयला की उपलब्धता नहीं होने के कारण इकाइयां अपने बिजली संयंत्रों को तकरीबन 50 प्रतिशत क्षमता पर ही संचालित कर पा रही हैं। अपनी उत्पादक इकाइयों को संचालित करने के उद्देश्य से उद्योग या तो बाहर से बिजली खरीद रहे हैं या फिर महंगे दरों पर खुले बाजार से उन्हें कोयला खरीदना पड़ रहा है। कुछ इकाइयां ऐसी भी हैं जिन्हें कोयला या तो दूसरे राज्यों से लेना पड़ रहा है अथवा आयात करना पड़ रहा है। वह भी तब जबकि एसईसीएल भरपूर मात्रा में कोयले का उत्पादन कर रहा है। यह कोयला स्थानीय उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर न देकर राज्य के बाहर के उद्योग को दिया जा रहा है। अनुमान है कि यदि एसईसीएल अपने कुल उत्पादन का मात्र 15-20 फीसदी कोयला राज्य के उद्योगों को देता है तब भी यहां के उद्योग सुचारू रूप से प्रचालित होने की स्थिति में आ जाएंगे। राज्य में मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्माण के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण होगा। राज्य में निवेश बढ़ेगा और अधिक से अधिक ऐसे उद्योग पनप सकेंगे जिनके लिए कच्चा माल राज्य के उन प्राइमरी उद्योगों से ही प्राप्त होगा जो वर्तमान में बड़े पैमाने संचालित हैं। राज्य को लगभग 200 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा वहीं छत्तीसगढ़ के नागरिकों के लिए रोजगार के एक लाख अतिरिक्त अवसर निर्मित होंगे। प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत यह कहता है कि छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादित कोयले और बिजली पर पहला अधिकार यहीं के निवासियों का है। राज्य की आवश्यकता पूर्ण होने के बाद यदि कोयला और बिजली सरप्लस है उसी दशा में यह राज्य के बाहर भेजा जाना चाहिए। विडंबना ही है कि छत्तीसगढ़ का कोयला देश के दूसरे राज्यों को जा रहा है और यहां के बिजली घर कोयले की आपूर्ति को लेकर परेशान हैं।