जनवरी-मार्च तिमाही में टीसीएस का कर पश्चात लाभ 8,049 करोड़ रुपये रहा, जो इस अवधि में आरआईएल के कर पश्चात लाभ 6,348 करोड़ रुपये के मुकाबले ज्यादा है। तिमाही में आरआईएल ने सालाना आधार पर शुद्ध लाभ में 39 फीसदी की गिरावट दर्ज की, जिसकी वजह कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट के चलते इन्वेंट्री का नुकसान है। इसकी तुलना में टीसीएसका शुद्ध लाभ चौथी तिमाही में सालाना आधार पर करीब एक फीसदी कम रहा।
करीब दो दशक से आरआईएल निजी क्षेत्र की सबसे ज्यादा लाभदायक कंपनी बनी हुई है। मुकेश अंबानी के नियंत्रण वाली कंपनी हालांकि अन्य वित्तीय मानकों मसलन कुल राजस्व, परिचालन लाभ, हैसियत, परिसंपत्ति और बाजार पूंजीकरण में टीसीएस से काफी अगे बनी हुई है।यह दूसरा मौका है जब टीसीएस ने आरआईएल को तिमाही आधार पर शुद्ध लाभ के मोर्चे पर पीछे छोड़ा है। दिसंबर 2014 की तिमाही में टीसीएस का शुद्ध लाभ आरआईएल से मामूली ज्यादा रहा था। कच्चे तेल की कीमतों में तेज गिरावट और कोविड-19 के कारण मांग में अप्रत्याशित कमी के कारण तिमाही में आरआईएल ने 4,245 करोड़ रुपये का इन्वेंट्री नुकसान दर्ज किया। सालाना आधार पर आरआईएल वित्त वर्ष 2020 में 39,354 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ के साथ सबसे ज्यादा लाभ वाली कंपनी बनी रही जबकि टीसीएस का शुद्ध लाभ 32,340 करोड़ रुपये रहा। साथ ही 30 तिमाहियों में यह पहला मौका है जब आरआईएल ने शुद्ध लाभ में सालाना आधार पर गिरावट दर्ज की, जिसका मतलब कंपनी की प्रति शेयर आय में गिरावट आई।
इन कंपनियों की बदलती किस्मत उनके बाजार पूंजीकरण में भी प्रतिबिंबित होती है। करीब एक दशक से बाजार पूंजीकरण के मोर्चे पर देश की सबसे मूल्यवान कंपनी के मामले में दोनों के बीच चूहे-बिल्ली की दौड़ देखने को मिली है। साल 2012 तक आरआईएल बाजार पूंजीकरण के मामले में अग्रणी बनी रही, जब टीसीएस ने उस पर बढ़त बनाई, जिसकी वजह लीमन संकट के बाद राजस्व व लाभ में तेज बढ़ोतरी थी।
2012 से टीसीएस करीब पांच साल तक अग्रणी बनी रही, जिसके बाद साल 2018 की शुरुआत में आरआईएल ने इस तकनीकी दिग्गज को पीछे छोड़ा क्योंकि निवेशकों ने उसके दूरसंचार उद्यम रिलायंस जियो की कामयाबी देखी। साल 2018 की आखिरी तिमाही में टीसीएस ने एक बार फिर आरआईएल को बाजार पूंजीकरण की सूची में पीछे छोड़ा। मौजूदा शेयर भाव पर आरआईएल का मूल्यांकन 9.3 लाख करोड़ रुपये है जबकि टीसीएस का बाजार पूंजीकरण 7.6 लाख करोड़ रुपये।