भिलाई (IP News). भिलाई नगर सदैव ही साहित्य, संस्कृति व संस्कार को सम्पोषित करने वाला शहर रहा है। भिलाई अपने स्थापना काल से ही पठन-पाठन में अपनी अभिरूचि दिखाता रहा है। यही वहज है कि आज भिलाई छत्तीसगढ़ का शिक्षाधानी कहलाता है। भिलाई में पुस्तक प्रेमियों का एक लम्बा इतिहास रहा है। सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र ने भिलाई के नागरिकों व अपने कार्मिकों की इस अभिरूचि को पुस्तकालय के माध्यम से निरंतर सिंचित किया है। बीएसपी द्वारा संचालित पुस्तकालयों का एक गौरवशाली परम्परा आज भी भिलाई के पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। सार्वजनिक पुस्तकालय के इस यात्रा की कहानी बेहद रोचक भी है और प्रेरक भी।
सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित सार्वजनिक पुस्तकालय की यात्रा टाउनशिप के सेक्टर-1 में नेहरु सांस्कृतिक भवन से प्रारंभ की गई और कुछ दिनों तक यह सिविक सेन्टर के नेहरु आर्ट गैलरी में भी संचालित की गई। आज यह सार्वजनिक पुस्तकालय न्यू-सिविक सेन्टर एरिया में संचालित की जा रही है। सार्वजनिक पुस्तकालय भिलाई के पुस्तक प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल बन चुका है। इसके प्रारंभ होने की कहानी भी बड़ी रोचक है। वर्ष 1970 के दशक में भिलाई के निवासियों द्वारा दान की गई पुस्तकों को ठेला गाड़ियों द्वारा इकट्ठा किया गया और लाइब्रेरी की स्थापना कर जनता के पठन-पाठन की व्यवस्था की गई। जनसहयोग से प्रारंभ इस पुस्तकालय में बीएसपी के सहयोग से अब 33,000 से अधिक पुस्तकों का संग्रहण सुधि पाठकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। स्थापना से अब तक इसने लाखों पाठकों के साथ एक लम्बा सफर तय किया है।
विदित हो कि बीएसपी के सहयोग से इस सार्वजनिक पुस्तकालय में प्रतिवर्ष नये पुस्तकों का आगमन होता है। पुस्तकालय में प्रतिदिन लगभग 100 पाठकों का आगमन होता है। आज कोविड के कारण सीमित संख्या में पाठकों का आना-जाना जारी है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों में कहानी, कविता, साहित्य व उपन्यास के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु विभिन्न प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध हैं। यह पुस्तकालय छात्रों और पुस्तक-प्रेमियों की पहली पसंद बन चुकी है।
यह सार्वजनिक पुस्तकालय जहाँ अध्ययनशील युवाओं से लेकर बच्चों तक तथा संयंत्र कार्मिकों से लेकर आम नागरिक तक इस सुविधा का निरंतर लाभ उठा रहे हैं। लाइब्रेरी में क्रमबद्ध रखी गई किताबें पाठकों को शीघ्र चयन की सुविधा प्रदान करता है। व्यवस्था के तहत बच्चों की किताबों को अलग-अलग रंग में दर्शाया गया है और विशेष रूप से भूतल पर रीडिंग हेतु एक अलग रूम की व्यवस्था की गई है। आज कई प्रसिद्ध लेखकों की किताबें इस पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रहे हैं, इनमें प्रमुख हैं ईनिड ब्लाइटन द्वारा लिखित उपन्यास, पी जी वोडहाउस, आर के नारायण के गर्निमो स्टिल्टन सहित अमर चित्र-कथा पुस्तकें और बहादुरों की कहानियों के साथ-साथ पंचतंत्र की कहानियांँ। पाठक अपने अभिरूचि के अनुरूप पुस्तकालय से अपनी पसंद की पुस्तक को निर्धारित अवधि के लिए ले जा सकते हैं। साथ ही, इनसाइक्लोपीडियॉस और महंगी किताबें जैसी सचित्र पुस्तकें भी संदर्भ पुस्तकों के रूप में उपलब्ध हैं।
न्यूनतम वार्षिक शुल्क और पठन शुल्क के साथ, प्रतिदिन पुस्तकालय में आगंतुक आते हैं और अपनी पसंद की किताबें पढ़ते या ले जाते हैं। रविवार और राष्ट्रीय छुट्टियों को छोड़कर पाठकों के लिए सदैव ही यह पुस्तकालय खुली रहती है।
इससे पूर्व, 1970 के दशक में, नेहरु साँस्कृतिक भवन में संचालित पुस्तकालय में हिंदी, उर्दू, तमिल, तेलुगु, बंगाली, मराठी, मलयालम, गुजराती आदि 10 भाषाओं में समाचार पत्र हुआ करते थे। अखबारों और पत्रिकाओं के लिए अलग-अलग रीडिंग रूम हुआ करता था।
बीएसपी के केन्द्रीय पुस्तकालय के साथ सार्वजनिक पुस्तकालय के विलय के बाद, विशेष सॉफ्टवेयर में कैटलॉगिंग और वर्गीकरण के साथ पुस्तकों का कलर कोडिंग किया गया है।
वर्तमान कोविड काल के दौरान, पुस्तकालय, पाठकों को संतुष्ट करने के अपने वादे पर खरा उतर रहा है। लाइब्रेरी के सदस्यों द्वारा पुस्तकों को अब शेल्फ से सीधे नहीं उठाया जा सकता है। 20,000 से अधिक पुस्तकों और उनके लेखकों की सूची के साथ कम्प्रेस्ड पीडीएफ फाइल का एक विशेष प्रावधान सदस्यों को ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है। ताकि वे ऑनलाइन माध्यम से उपलब्ध पुस्तकों का चयन कर सकें। साथ ही वे पुस्तक और लेखक के नाम की जाँच के बाद लाइब्रेरियन से शेल्फ मंें रखे पुस्तक के लिए अनुरोध करते हैं। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पुस्तक पठन भी बाधित न हो इसके लिए इस विशेष तरीके को अपनाया गया है।
सेन्ट्रल लाइब्रेरी कमेटी द्वारा खरीद की मंजूरी के बाद प्रतिवर्ष नये पुस्तकों का आगमन होता है। यह पुस्तकालय नये फर्निचर और पूर्णतः एसी रीडिंग रूम से सुसज्जित है। पुस्तकालय वर्तमान में 43 पत्रिकाओं और 8 समाचार पत्रों को मंगवाती है।
विदित हो कि वर्ष 1976 में रश्मि खरे ने लाइब्रेरियन की सेवा प्रारंभ की। रश्मि वर्ष 1975 में पंडित रविशंकर शुल्क विश्वविद्यालय, रायपुर से लाइब्रेरी साइंस से पास आउट दूसरे बैच की छात्रा थीं। वह कहती हैं कि मैंने सार्वजनिक पुस्तकालय के सबसे अच्छे दिनों की अवधि मंें कार्य किया, जब पुस्तक प्रेमी पुस्तकालय का भरपूर उपयोग करते थे। पुराने दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि पुराने पुस्तकालय में हिन्दुस्तान, माधुरी, लोकप्रभा, कादम्बिनी, केरला कौमुदी, मुक्ता, सरिता, सारिका आदि पत्रिकाओं का संग्रह रहता था। बच्चे फैंटम, विक्रम-बेताल, चाचा-चैधरी से लेकर सुमन-सौरभ को पढ़कर लोट-पोट हो जाते थे।