ज्यादा दिन नहीं गुजरे होंगे जब टीवी चैनल के एक पत्रकार ने राजनीति की एक सम्मानित महिला के बारे में अजीबोगरीब बयान दिए थे जिसके बारे में उनके खिलाफ नाराजगी जताई गई थी. अभी यह मामला कुछ ठंडा ही हुआ था कि एक टीवी चैनल के एक और पत्रकार जो अपने प्रोग्राम में ज्यादातर चीखने शोर मचाने के लिए जाने जाते हैं। उनके द्वारा भारत के एक महान सूफी संत के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया है जिसको लेकर गहरी नाराजगी जताई जा रही है. जिस तरह से उक्त पत्रकार ने टीवी डिबेट के दौरान भारत के महान सूफी संत के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है वह किसी भी तरह से सही नहीं है और यह किसी एक धर्म या उससे जुड़े किसी सूफी संत के बारे में गलत टिप्पणी नहीं कहा जा सकता बल्कि यह भारतीय संस्कृति के खिलाफ है क्योंकि भारतीय संस्कृति हमेशा से सूफी संतों का आदर करना सिखाती है और जहां तक सूफी संतों का जीवन रहा है तो वह भी किसी एक धर्म के प्रति नहीं बल्कि सभी मानव जाति के लिए उनका जीवन समर्पित रहा और जहां तक सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की बात है तो उनके दरबार में भारत के हर धर्म के लोग पहुंचते हैं. भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर बड़े-बड़े नेताओं द्वारा उनकी दरगाह पर चादर पेश की जाती है और यह सिलसिला हर साल जारी रहता है। ऐसे में उक्त पत्रकार ने जो घटिया हरकत की है वह घोर निंदनीय है और उसकी सभी धर्मों के लोगों द्वारा निंदा की जा रही है और सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह कैसी पत्रकारिता है. यहां एक बात यह भी सामने आ रही है कि शायद उक्त पत्रकार ने ऐसा उक्त चैनल की टीआरपी के गिरने के कारण किया है ताकि वह चैनल शोहरत में आए और उसकी टीआरपी बढ़ जाए।

आइये जरा यह समझते हैं कि टीआरपी क्या होती है

टीआरपी का मतलब होता है टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट. जिसके माध्यम से यह पता लगाया जाता है कि कौन टीवी चैनल सबसे ज्यादा मशहूर है जिसको दर्शक पसंद कर रहे हैं और कौन टीवी सीरियल या टीवी प्रोग्राम या टीवी चैनल की टीआरपी कम है. टीआरपी का पता कैसे चलता है यह भी एक तरीका है. बहरहाल पत्रकार ने जो हरकत की है वह बहुत निंदनीय है देवबंद दारुल उलूम के मोहतमिम ने भी उसकी निंदा की है और सोशल मीडिया पर आप देखे तो सभी धर्मों के लोग उक्त पत्रकार की निंदा कर रहे हैं और खुद बुद्धिजीवी वर्ग के लोग उसके विरोध में उतर आए हैं और कह रहे हैं कि इसे पत्रकारिता बिल्कुल नहीं कहा जा सकता है।

डिबेट के नाम पर गिर रहा है स्तर

आजकल टीवी चैनलों पर किसी भी मुद्दे पर डिबेट होना आम बात है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि डिबेट से निकलकर काफी कुछ सामने आता है लेकिन जिस तरह की डिबेट टीवी चैनलों पर हो रही है वह किसी भी तरह से सही नहीं है. अब ऐसे ऐसे मामलों पर टीवी चैनल पर डिबेट होने लगी है कि जिनका कोई औचित्य ही नहीं होता. कुछ टीवी चैनलों पर तो या यूं कहिए कि ज्यादातर टीवी चैनलों पर गिने चुने वही चेहरे जाने पहचाने वही चेहरे नजर आते हैं जो चीखते चिल्लाते शोर मचाते हुए दिखाई देते हैं जिन्हें देखकर यह लगता है कि क्या यह डिबेट फिक्स है और इनको ऐसा करने का क्या पैसा मिलता है? सोशल मीडिया पर जा कर देखिए तो लोग तमाम तरह के सवाल खड़े करते हैं. सोशल मीडिया की हर खबर पर तो यकीन नहीं किया जा सकता लेकिन इतना जरूर है कि सोशल मीडिया अपनी बात कहने का एक सशक्त माध्यम है और लोग उस पर अपनी बात व्यक्त करते हैं।

कभी देखिए इन पत्रकारों को भी

खुद कई पत्रकार भी इस बात को कहने लगे हैं कि टीवी स्टूडियो में ंब में बैठ कर पत्रकारिता करना. डिबेट में शोर शराबा करना बहुत आसान है यदि वास्तव में पत्रकारिता में मेहनत देखनी हो तो उन क्षेत्रों में जा कर के देखिए कि जहां पर ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकार दिन रात एक कर खबरें तैयार करते हैं और मेहनत करते हैं और उसके बदले में उनको कुछ खास नहीं मिल पाता है. ऐसे पत्रकारों की मेहनत कोरोना संकट में तो और ज्यादा बढ़ गई है जिसे वह पूरी ईमानदारी के साथ अंजाम दे रहे हैं।

 

 

source : WORLD HINDI

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