नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मेरठ के वेलेंटिस कैंसर हॉस्पिटल से चौकाने वाली खबर सामने आई है। इस निजी अस्पताल ने बाक़ायदा हिंदी के कुछ अख़बारों में विज्ञापन दिया कि उनके यहां भर्ती होने वाले मुस्लिम मरीज़ों और तीमारदारों को कोरोना संक्रमण की जांच कराकर और उसकी निगेटिव रिपोर्ट लेकर ही आना होगा।

मेरठ के इस निजी अस्पताल ने अपने यहां मुस्लिम मरीज़ों की भर्ती के लिए पहले तो अजीबो-ग़रीब शर्त रखी और जब इसे लेकर हंगामा हुआ तो अस्पताल प्रबंधन ने माफ़ी मांग ली है।हालांकि, पुलिस ने इस मामले में अस्पताल प्रबंधन के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली है।

मेरठ के मवाना रोड पर वैलेंटिस कैंसर अस्पताल ने शुक्रवार 17 अप्रैल को कुछ अख़बारों में विज्ञापन दिया कि उनके यहां भर्ती होने वाले मुस्लिम मरीज़ों और तीमारदारों को कोरोना संक्रमण की जांच कराकर और उसकी निगेटिव रिपोर्ट लेकर ही आना होगा।

विज्ञापन में कहा गया है कि हॉस्पिटल अब नये मुसलिम मरीजों को तब तक भर्ती नहीं करेगा जब तक कि वह कोरोना नेगेटिव होने की रिपोर्ट नहीं देगा। ऐसी शर्त दूसरे धर्म के लोगों के लिए नहीं है। हालाँकि, कुछ विशिष्ट मुसलिमों को इस नियम से छूट दी गई है।

हॉस्पिटल द्वारा धर्म के आधार पर मरीज़ों की भर्ती के नये नियम बनाए जाने से विवाद होने की संभावना है क्योंकि हॉस्पिटल का यह ताज़ा नियम मेडिकल दिशा-निर्देशों के ख़िलाफ़ है।

‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार, हॉस्पिटल ने यह क़दम इसका हवाला देते हुए उठाया है कि कुछ मुसलिम मरीज़ मास्क पहनने, स्वच्छता का ख़याल रखने जैसे दिशा-निर्देशों को नहीं मान रहे हैं और हॉस्पिटल स्टाफ़ के साथ ग़लत व्यवहार कर रहे हैं। हॉस्पिटल द्वारा दिए गए विज्ञापन के अनुसार, ‘अस्पताल के कर्मचारियों और मरीज़ों की सुरक्षा के लिए अस्पताल प्रशासन सभी नए मुसलिम मरीज़ों से आग्रह करता है कि वे और अपने साथ देखभाल के लिए आने वाले लोगों का कोरोना का परीक्षण कराएँ और केवल तभी अस्पताल आएँ जब उनकी रिपोर्ट नेगेटिव हो।

धर्म के आधार पर बनाए गए इन अजीबोगरीब नियमों के तहत हॉस्पिटल प्रशासन ने विज्ञापन में दावा किया है कि दिल्ली में तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम के बाद कोरोना मरीजों की संख्या में ‘अप्रत्याशित’ बढ़ोतरी हुई है।

‘द वायर’ के अनुसार हॉस्पिटल मैनेजमेंट टीम में शामिल और रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट ने कहा, ‘मेरठ में दो को छोड़कर बाक़ी सभी मामले का तब्लीग़ी जमात से संबंध है।’ जबकि स्वास्थ्य सेवा निदेशालय लखनऊ के अनुसार 18 अप्रैल की शाम तक मेरठ के 70 मरीज़ों में से 46 ही तब्लीग़ी जमात से जुड़े हैं। यानी जैन का दावा सही नहीं है।

विज्ञापन में यह भी कहा गया है कि कुछ मुसलिमों के ख़राब रवैये के कारण सभी मुसलिम भाइयों को कुछ समय के लिए दिक्कत उठानी पड़ेगी। हालाँकि आपात स्थिति वाले मरीज़ों के प्रति थोड़ा नरम रुख रखा गया है और कहा गया है कि ऐसे मरीज़ों को भर्ती किया जा सकता है लेकिन उनके स्वाब के सैंपल लेकर मेरठ मेडिकल कॉलेज भेजा जाएगा और मरीज़ को 4500 रुपये भुगतान करने होंगे।

जैन ने कहा कि इन नियमों से मुसलिम डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, जज, पुलिस कर्मी, शिक्षक और दूसरे उन मुसलमानों को छूट दी गई है जो सघन मुसलिम बस्तियों में नहीं रहते हैं। उन्होंने यह भी साफ़ किया कि मुसलिम बहुल क्षेत्रों में रह रहे इसलाम के अलावा दूसरे धर्मों के लोगों पर भर्ती होने से पहले कोरोना जाँच रिपोर्ट नेगेटिव देने का यह नियम नहीं लागू होगा।

अस्पताल ने इस नियम से शिया मुसलमानों के अलावा उन मुसलमानों को भी छूट दे रखी थी जो डॉक्टर हों, पैरामेडिकल सेवाओं से जुड़े हों या फिर जज, पुलिस, या अफ़सर हों।।इसके अलावा उन मुसलमानों को भी नियम से छूट देने की घोषणा कर रखी थी जो घनी आबादी में न रहते हों। इस विवादास्पद विज्ञापन में और भी कई ऐसी बातें लिखी गई हैं जो कि धर्म के आधार पर सीधे तौर पर भेदभाव करती हैं। अस्पताल का विज्ञापन सोशल मीडिया में चर्चा में आने पर मेरठ पुलिस ने अस्पताल प्रबंधन पर एफ़आईआर दर्ज कर ली है।

मेरठ के पुलिस अधीक्षक ग्रामीण अविनाश पांडेय ने बीबीसी को बताया, “अस्पताल प्रबंधन और अस्पताल के मालिक डॉक्टर अमित जैन के ख़िलाफ़ विभिन्न धाराओं में एफ़आईआर दर्ज हो गई है. जांच की जा रही है कि ऐसा विज्ञापन क्यों दिया और यह कैसे छप गया?”

अस्पताल ने विज्ञापन के लिए मांगी माफ़ी
इस विज्ञापन को लेकर सोशल मीडिया में काफ़ी हंगामा हुआ।हालांकि, अस्पताल प्रबंधन ने अगले ही दिन इस बारे में स्पष्टीकरण देते हुए माफ़ी नामा भी छपवाया लेकिन अस्पताल के पास इस बात के जवाब नहीं हैं कि ऐसे विज्ञापन की उन्हें ज़रूरत क्यों पड़ी।

वैलेंटिस अस्पताल के प्रबंधक अमित चौधरी ने बीबीसी को बताया, “विज्ञापन के अगले ही दिन हमने माफ़ीनामा भी जारी किया है. ग़लती से ऐसा हो गया था और छप गया तब हम लोगों ने उसे देखा. हमारा उद्देश्य किसी की भी भावनाओं को आहत करना नहीं था. जो भी हुआ ग़लती से हुआ और हमने उस पर माफ़ी भी मांगी है।

अमित जैन ने इसके अलावा और किसी भी सवाल का जवाब देने से साफ़ इनकार कर दिया. एसपी ग्रामीण अविनाश पांडेय का कहना था कि अस्पताल प्रबंधन ने स्पष्टीकरण भले ही दिया है लेकिन सारी बातें जांच के बाद ही सामने आएंगी और उन्हें जो जवाब देना होगा कोर्ट में देंगे।

हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भी धर्म के आधार पर कोरोना वार्ड बनाने की ख़बर आने के बाद ऐसा ही विवाद हुआ था। तब गुजरात सरकार ने उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। उस हॉस्पिटल के मेडिकल सुप्रींटेंडेंट डॉ. गुणवंत एच राठौड़ ने भी कहा था कि धर्म के आधार पर अलग कोरोना वार्ड नहीं बनाया गया है और उनके बयान को ग़लत तरीक़े से पेश किया गया है। यानी वह पिछले बयान से पूरी तरह पलट गए। एक दिन पहले ही ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने लिखा था कि राठौड़ ने कहा था कि ‘यहाँ हमने हिंदू और मुसलिम मरीजों के लिए अलग-अलग वार्ड बनाए हैं।’ इसके बाद विवाद थम गया।

 

 

source : worldhindi

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