नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण से जूझ रहे दुनियाभर के देश धीरे-धीरे लॉकडाउन में राहत देने के कदम उठा रहे हैं। लेकिन, स्वास्थ्य सेवा से जुड़े विशेषज्ञ इसको लेकर काफी चिंतित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि कोरोना का टीका बनने तक लॉकडाउन में राहत को सुरक्षित बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा जांच करनी होगी ताकि संक्रमितों का पता लगाकर उन्हें पृथक किया जा सके।
डब्ल्यूएचओ की प्रवक्ता डॉ. मारग्रेट हैरिस के मुताबिक, देशों को संक्रमण का पता लगाने और संक्रमितों को स्वस्थ लोगों से अलग करने की जरूरत है। इसका एक मात्र तरीका जांच ही है। अगर ऐसा नहीं होता है तो लॉकडाउन खोलने का कोई फायदा नहीं होगा।

भारत में रोज डेढ़ लाख टेस्ट की जरूरत

विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन में कई राहत देने के साथ ही भारत में संक्रमण भी बढ़ रहा है। रविवार को एक दिन में संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए। ऐसे में जिस रफ्तार से संक्रमण बढ़ रहा है, उसे देखते हुए देश में जांच भी बढ़ाने की जरूरत है। आईसीएमआर के मुताबिक अब तक देश में मात्र 6,25309 टेस्ट हुए हैं। अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय में संक्रामक रोगों के प्रमुख फहीम यूनुस का कहना है कि संक्रमण पर काबू पाने के लिए भारत को एक महीने तक रोज कम से कम डेढ़ लख टेस्ट करने की जरूरत है।

अमेरिका में सीमित है जांच

अमेरिका के जॉर्जिया में लॉकडाउन में बड़ी छूट दी गई है। लेकिन विशेषज्ञ इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के मुताबिक, अमेरिका में अब तक कुल 40 लाख 69 हजार टेस्ट हुए हैं। लेकिन यह आंकड़ा रॉकफेलेर फाउंडेशन की उन सिफारिशों से कहीं कम है, जिसमें कहा गया था कि लॉकडाउन खत्म करने से पहले अमेरिका को अगले दो महीने तक हर हफ्ते कम से कम 30 लाख जांच करने की जरूरत है।
वहीं, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मुताबिक, लॉकडाउन खोलने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए देश को जून तक हर दिन 50 लाख टेस्ट करने होंगे। जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के मुताबिक, अमेरिका में कोराना संक्रमण के मामलों के पॉजिटिव आने की दर 18.8 फीसदी है। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि इतनी ज्यादा दर यह दर्शाती है कि सिर्फ गंभीर रूप से बीमार लोगों या अस्पतालों में ही जांच हो रही है। डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक कुल टेस्टिंग के बाद अगर पॉजिटिव मामलों की दर 9 फीसदी के आसपास या इससे नीचे होती है तो वहां जांच सही तरीके से हो रही है।

ब्रिटेन में पॉजिटिव मामलों की दर 23.4 प्रतिशत

जांच के मामले में यूरोप के भी कई देश पीछे चल रहे हैं। ब्रिटेन में अब तक कुल 6,10000 टेस्ट हुए हैं और मामलों के पॉजिटिव आने की दर 23.4 प्रतिशत है। हालांकि यहां कई सामाजिक पाबंदियां लगाई गई हैं, पर इसका कोई फायदा नहीं हो रहा है। राजधानी लंदन सहित कई शहरों में लोग इन पाबंदियों को तोड़ते नजर आ जाते हैं। इसके बावजूद ब्रिटिश सरकार अब यह विकल्प भी तलाश रही है कि पाबंदियों को कब और कैसे हटाना है। फ्रांस और स्वीडन में भी बुत कम जांच हो रही है।
जर्मनी बेहतर स्थिति में
अमेरिका, ब्रिटेन और भारत की तुलना में जर्मनी की स्थिति सबसे बेहतर है। जर्मनी के राष्ट्रीय स्वास्थ्य निकाय की सबसे बड़ी संस्था रॉबर्ट कोच इंस्टीट्यूट के मुताबिक, दो हफ्ते पहले तक यहां हर हफ्ते चार लाख टेस्ट किए गए थे। इसके बाद देश ने अपनी टेस्ट करने की क्षमता बढ़ाकर 7,30000 कर ली है। लॉकडाउन में राहत देने के साथ ही सरकार की यहां जांच की संख्या भी बढ़ाने की योजना है। खत्म हुए हफ्ते तक जर्मनी में 20 लाख से ज्यादा टेस्ट हो चुके थे, जिनमें पॉजिटिव मामलों की दर 7.5 फीसदी रही। यह डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप है।

 

 

Source : Hindustan

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