नई दिल्ली। देश की दिग्गज तेल मार्केटिंग कंपनी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड विदेशी कंपनियों के हाथों में जा सकती है। सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको और अमेरिकी कंपनी Exxon Mobil ने हिस्सेदारी खरीदने में रुचि दिखाई है। कंपनी में 52.98 फीसदी की हिस्सेदारी को खरीदने के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट दाखिल करने की आखिरी तारीख सरकार ने 31 जुलाई तय की है। इस तारीख को पहले भी बढ़ाया जा चुका है, लेकिन अब सरकार को भरोसा है कि इसे बढ़ाना नहीं पड़ेगा और समय रहते इच्छुक निवेशक मिल जाएंगे। बिजनस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक बीपीसीएल में हिस्सेदारी खरीदने को लेकर अब तक करीब 100 इन्क्वॉयरीज हो चुकी हैं।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि सऊदी अरामको, अबू धाबी नेशनल ऑइल कंपनी, रूस की रोजनेफ्ट और अमेरिका की कंपनी Exxon Mobil बीपीसीएल की हिस्सेदारी खरीदने में रुचि दिखाई है। ये सभी कंपनियां बीपीसीएल की हिस्सेदारी की नीलामी में हिस्सा ले सकती हैं। हालांकि भारत की कंपनियां भी इस मामले में पीछे नहीं है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के मुताबिक मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड भी बोली में हिस्सा ले सकती है। फिलहाल इस डील के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट की डेडलाइन को दो बार बढ़ाया जा चुका है और 31 जुलाई आखिरी तारीख तय की गई है।

सरकार ने देश की महारत्न तेल कंपनी में 53.98 फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला लिया है। इसके अलावा मैनेजमेंट कंट्रोल का भी ट्रांसफर किया जाएगा। बीपीसीएल की हिस्सेदारी खरीदने के लिए सरकारी कंपनियों पर रोक लगाई गई है, जबकि वैश्विक कंपनियों और निजी सेक्टर की भारतीय कंपनियों को इसकी मंजूरी दी गई है। कंपनी में निवेशकों को कम से कम 10 अरब डॉलर की रकम का निवेश करना होगा।

निजी मैनेजमेंट संग काम की इच्छा न रखने वालों को वीआरएस

इस बीच भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड ने कर्मचारियों के लिए वीआरएस स्कीम लॉन्च की है। देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी ने ऐसे कर्मचारियों के लिए यह स्कीम शुरू की है, जो किसी कारण से अब कंपनी के साथ काम जारी नहीं रखना चाहते। यह वीआरएस स्कीम 23 जुलाई से शुरू हुई है और 13 अगस्त तक चलने वाली है। कंपनी के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि यह वीआरएस स्कीम ऐसे कर्मचारियों के लिए लॉन्च की गई है, जो प्राइवेट मैनेजमेंट के साथ काम नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा, ‘कुछ कर्मचारियों को लगता है कि कंपनी के निजी हाथों में जाने से उनकी भूमिका पहले जैसी नहीं रह जाएगी। इसलिए उन्हें कंपनी छोड़ने का विकल्प दिया गया है।’

 

Source : Jansatta

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