28 सितंबर को शहीद-ए-आजम भगत सिंह की 113वीं जयंती है। शहीद भगत सिंह के बलिदान को भारत कभी नहीं भूल सकता है। वह आज भी लाखों-करोड़ो हिन्दुस्तानी के दिलों में बसते हैं। हिन्दुस्तान का बच्चा-बच्चा उन्हें जानता है। वह भारत के प्रमुख स्वंतत्रता सेनानी थे। भारत की आजादी में शहीद भगत सिंह का बेहद अहम योगदान रहा है। देशभक्ति की झलक बचपन से ही भगत सिंह में दिखने लगी थी। पढ़ें शहीद- ए- आजम भगत सिंह के विचार:
“जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।“ ~ भगत सिंह
“मेरा धर्म देश की सेवा करना है।”~ भगत सिंह
“प्रेमी, पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं।“ ~ भगत सिंह
“देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं।“ ~ भगत सिंह
“सूर्य विश्व में हर किसी देश पर उज्ज्वल हो कर गुजरता है परन्तु उस समय ऐसा कोई देश नहीं होगा जो भारत देश के सामान इतना स्वतंत्र, इतना खुशहाल, इतना प्यारा हो।” ~ भगत सिंह
“यह एक काल्पनिक आदर्श है कि आप किसी भी कीमत पर अपने बल का प्रयोग नहीं करते, नया आन्दोलन जो हमारे देश में आरम्भ हुआ है और जिसकी शुरुवात की हम चेतावनी दे चुके हैं वह गुरुगोविंद सिंह और शिवाजी महाराज, कमल पाशा और राजा खान, वाशिंगटन और गैरीबाल्डी, लाफयेत्टे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।”~ भगत सिंह
“मनुष्य/ इन्सान तभी कुछ करता है जब उसे अपने कार्य का उचित होना सुनिश्चित होता है, जैसा की हम विधान सभा में बम गिराते समय थे। जो मनुष्य इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके लाभ के हिसाब के अनुसार इसे अलग-अलग अर्थ और व्याख्या दिए जाते हैं।”~ भगत सिंह
“राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।“ ~ भगत सिंह
“यदि बहरों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा। जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं थ। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था । अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिये।” ~ भगत सिंह
“किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं।”~ भगत सिंह
“कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा।” ~ भगत सिंह
“किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।”~ भगत सिंह
“जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।“ ~ भगत सिंह
“आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।”~ भगत सिंह
“जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी।“ ~ भगत सिंह
“मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा , आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ। पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है।”~ भगत सिंह
“अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है । लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें ।” ~ भगत सिंह
“किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान , वाशिंगटन और गैरीबाल्डी , लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।” ~ भगत सिंह
“इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है , जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।” ~ भगत सिंह
“…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।” ~ भगत सिंह
“क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।” ~ भगत सिंह
“क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।” ~ भगत सिंह
“निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।” ~ भगत सिंह
“मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।“ ~ भगत सिंह
“किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते । ते तो बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं । सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।”~ भगत सिंह
“हम नौजवानों को बम और पिस्तौल उठाने की सलाह नहीं दे सकते । विद्यार्थियों के लिए और भी महत्त्वपूर्ण काम हैं । राष्ट्रीय इतिहास के नाजुक समय में नौजवानों पर बहुत बड़े दायित्व का भार है और सबसे ज्यादा विद्यार्थी ही तो आजादी की लड़ाई में अगली पांतों में लड़ते हुए शहीद हुए है । क्या भारतीय नौजवान इस परीक्षा के समय में वही संजीदा इरादा दिखाने में झिझक दिखाएंगे ।”~ भगत सिंह
“हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है । चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति हों या अंग्रेजी शासक या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी रखी हुई है । चाहे शुद्ध भारतीय पूंजी-पतियों के द्वारा ही निर्धनों का खून चूसा जा रहा हो, तो भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं पड़ता ।”~ भगत सिंह
“जहां तक हमारे भाग्य का संबंध है, हम बड़े बलपूर्वक आपसे यह कहना चाहते हैं कि अपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है, आप ऐसा करेंगे ही, आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त हैं, परंतु इस प्रकार आप ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला’ सिद्धांत ही अपना रहे हैं और आप उस पर कटिबद्ध है । हमारे अभियोग की सुनवाई इस वक्तव्य को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि हमने कभी कोई प्रार्थना नहीं की और अब भी हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं करते । हम केवल आपसे यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि आपकी सरकार के ही एक न्यायालय के निर्णय के अनुसार हमारे विरुद्ध युद्ध जारी रखने का अभियोग है, इस स्थिति में हम युद्ध-बंदी हैं, अत: इस आधार पर हम आपसे मांग करते हैं कि हमारे साथ युद्ध-बंदियों जैसा ही बर्ताव किया जाए और हमें फांसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए ।”~ भगत सिंह
“यह बात प्रसिद्ध है कि मैं एक आतंककारी (टेररिस्ट) रहा हूं परंतु मैं आतंककारी नहीं हूं । मैं एक क्रांतिकारी हूं जिसके कुछ निश्चित विचार और निश्चित आदर्श हैं और जिसके सामने एक लंबा प्रोग्राम है । मुझे यह दोष दिया जाएगा, जैसा कि लोग रामप्रसाद बिस्मिल को भी देते थे कि फांसी की काल कोठारी में पड़े रहने से मेरे विचारों में भी कोई परिवर्तन उग गया है, परंतु ऐसी बात नहीं । मेरे विचार अब भी वही हैं, मेरे हृदय में अब भी उतना ही और वैसा ही उत्साह और वही लक्ष्य है जो जेल से बाहर था, पर मेरा यह दृढ़-विश्वास है कि हम बम से कोई लाभ प्राप्त नहीं कर सकते । यह बात हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के इतिहास से भी आसानी से मालूम पड़ती है । बम फेंकना न सिर्फ व्यर्थ है, अपितु बहुत बार हानिकारक भी है । उसकी आवश्यकता किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही पड़ती है, हमारा मुख्य लक्ष्य मजदूर और किसानों का संगठन होना चाहिए ।”~ भगत सिंह
“यदि आप सोलह उगने के लिए लड़ रहे हैं और एक आना मिल जाता है, तो वह एक आना जेब में डालकर बाकी पंद्रह उगने के लिए फिर जंग छेड़ दीजिए । हिन्दुस्तान के माडरेटों की जिस बात से हमें नफरत है, वह यही है कि उनका आदर्श कुछ नहीं है । वे एक आने के लिए ही लड़ते हैं और उन्हें मिलता कुछ भी नहीं ।”~ भगत सिंह
“समझौता कोई ऐसी हेय और निंदा योग्य वस्तु नहीं, जैसा कि साधारणत: हम लोग समझते है, बल्कि समझौता राजनीतिक संग्रामों का एक अत्यावश्यक अंग है । कोई भी कौम जो किसी अत्याचारी शासन के विरुद्ध खड़ी होती है, यह जरूरी है कि वह आरंभ में असफल हो और अपनी लंबी जद्दोजहद के मध्यकाल में इस प्रकार के समझौते के जरिए कुछ राजनीतिक सुधार हासिल करती जाए, परंतु पहुंचते-पहुंचते अपनी ताकतों को इतना संगठित और दृढ़ कर लेती है और उसका दुश्मन पर आखिरी हमला इतना जोरदार होता है कि शासक लोगों की ताकतें उस वक्त तक यह चाहती हैं कि उसे दुश्मन के साथ कोई समझौता कर लेना चाहिए ।”~ भगत सिंह
“हमारे दल को नेताओं की आवश्यकता नहीं है । अगर आप दुनियादार हैं, बाल-बच्चों और गृहस्थी में फंसे है, तो हमारे मार्ग पर मत आइए । ‘आप हमारे उद्देश्य में सहानुभूति रखते हैं तो और तरीकों से हमें सहायता दीजिए । नियंत्रण में रह सकने वाले कार्यकर्ता ही इस आदोलन को आगे ले जा सकते हैं ।”~ भगत सिंह
“समझौता भी ऐसा हथियार है, जिसे राजनीतिक जद्दोजहद के बीच में पग-पग पर इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है जिससे एक कठिन लड़ाई से थकी हुई कौम को थोड़ी देर के लिए आराम मिल सके और वह आगे के युद्ध के लिए अधिक ताकत के साथ तैयार हो सके, परंतु इन सारे समझौतों के बावजूद जिस चीज को हमें भूलना न चाहिए वह हमारा आदर्श है जो हमेशा हमारे सामने रहना चाहिए । जिस लक्ष्य के लिए हम लड़ रहे हैं उनके संबंध में हमारे विचार बिल्कुल स्पष्ट और दृढ़ होने चाहिए ।”~ भगत सिंह
“भारत की वर्तमान लड़ाई ज्यादातर मध्य श्रेणी के लोगों के बलबूते पर लड़ी जा रही है, जिसका लक्ष्य बहुत सीमित है । कांग्रेस दुकानदारों और पूंजीपतियों के जरिए इंग्लैंड पर आर्थिक दबाव डालकर कुछ अधिकार ले लेना चाहती है, परंतु जहां तक देश के करोड़ों मजदूरों और किसान जनता का ताल्लुक है, उनका उद्धार इतने से नहीं हो सकता । यदि देश की लड़ाई लड़नी हो, तो मजदूरों, किसानों और सामान्य जनता को आगे लाना होगा, इन्हें लड़ाई के लिए संगठित करना होगा । नेता उन्हें अभी तक आगे लाने के लिए कुछ नहीं करते, न कर ही सकते है । इन किसानों को विदेशी हुकूमत के जुए के साथ-साथ भूमिपतियों और पूंजीपतियों के जुए से भी उद्धार पाना है ।”~ भगत सिंह
“हमारा लक्ष्य शासन शक्ति को उन हाथों के सुपुर्द करना है, जिनका लक्ष्य समाजवाद हो, इसके लिए मजदूरों और किसानों को संगठित करना आवश्यक होगा, क्योंकि उन लोगों के लिए लॉर्ड रीडिंग या इर्विन की जगह तेजबहादुर या पुरुषोत्तम दास, ठाकुर दास के उग जाने से कोई भारी फर्क न पड़ सकेगा ।”~ भगत सिंह
“यदि हमारे नौजवान इसी प्रकार प्रयत्न करते जाएंगे, तब जाकर एक साल में स्वराज्य तो नहीं, किंतु भारी कुर्बानी और त्याग की कठिन परीक्षा में से गुजरने के बाद वे अवश्य विजयी होंगे । क्रांति चिरंजीवी हो ।”~ भगत सिंह
“क्रांति से हमारा अभिप्राय समाज की वर्तमान प्रणाली और वर्तमान संगठन को पूरी तरह उखाड़ फेंकना है । इस उद्देश्य के लिए हम पहले सरकार की ताकत को अपने हाथ में लेना चाहते हैं । इस समय शासन की मशीन धनिकों के हाथ में है । सामान्य जनता के हितों की रक्षा के लिए तथा उरपने आदर्शों को क्रियात्मक रूप देने के लिए अर्थात समाज का नए सिरे से संगठन कार्ल मार्क्स के सिद्धांतों के अनुसार करने के लिए हम सरकार की मशीन को उरपने हाथ में लेना चाहते हैं । हम इसी उद्देश्य के लिए लड़ रहे है, पंरतु इसके लिए हमें साधारण जनता को शिक्षित करना चाहिए ।”~ भगत सिंह
“मुझे दंड सुना दिया गया है और फांसी का आदेश हुआ है । इन कोठरियों में मेरे अतिरिक्त फांसी की प्रतीक्षा करने वाले बहुत -से अपराधी हैं । ये यही प्रार्थना कर रहे हैं कि किसी तरह फांसी से बच जाएं, परंतु उनके बीच शायद मैं ही एक ऐसा आदमी हूं जो बड़ी बेताबी से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूं जब मुझे अपने आदर्श के लिए फांसी के फंदे पर धूलने का सौभाग्य प्राप्त होगा । मैं खुशी के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़कर दुनिया को दिखा दूंगा कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए कितनी वीरता से बलिदान दे सकते हैं।“ – भगत सिंह( बटुकेश्वर दत्त को लिखे गए पत्र का हिस्सा )”
“मुझे फांसी का दंड मिला है, किंतु तुम्हें आजीवन कारावास दंड मिला है । तुम जीवित रहोगे और तुम्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखाना है कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर हर मुसीबत का मुकाबला भी कर सकते हैं । मृत्यु सांसारिक कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त करने का साधन नहीं बननी चाहिए, बल्कि जो क्रांतिकारी संयोगवश फांसी के फंदे से बच गए हैं उन्हें जीवित रहकर दुनिया को यह दिखा देना चाहिए कि वे न केवल अपने आदर्शों के लिए फांसी पर चढ़ सकते हैं, जेलों की अंधकारपूर्ण छोटी कोठरियों में पुल-घुलकर निकृष्टतम दरजे के अत्याचार को सहन भी कर सकते हैं ।“ – भगत सिंह( बटुकेश्वर दत्त को लिखे गए पत्र का हिस्सा )”
“जिंदा रहने की ख्वाहिश कुदरती तौर पर मुझमें भी होनी चाहिए । मैं इसे छिपाना नहीं चाहता, लेकिन मेरा जिंदा रहना एक शर्त पर है । मैं कैद होकर या पाबंद होकर जिंदा रहना नहीं चाहता ।”~ भगत सिंह
“मेरा नाम हिन्दुस्तानी इंकलाब पार्टी का निशान बन चुका है और इंकलाब पसंद पार्टी के आदर्शों और बलिदानों ने मुझे बहुत ऊंचा कर दिया है । इतना ऊंचा कि जिंदा रहने की सूरत में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता। इसके सिवा कोई लालच मेरे दिल में फांसी से बचे रहने के लिए कभी नहीं आया, मुझसे ज्यादा खुशकिस्मत कौन होगा । मुझे आज तक अपने आप पर बहुत नाज है । मुझमें अब कोई ख्वाहिश बाकी नहीं है । अब तो बड़ी बेताबी से आखिरी इम्तहां का इंतजार है । आरजू है कि यह और करीब हो जाए ।”~ भगत सिंह
“आज मेरी कमजोरियां लोगों के सामने नहीं हैं । अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और इंकलाब का निशान मद्धिम पड़ जाएगा या शायद मिट ही जाए, लेकिन मेरे दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते फांसी पाने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि इंकलाब को रोकना इम्पीरियलिज्म की तमाम सर (संपूर्ण) शैतानी कुबतों के बस की बात न रहेगी ।”~ भगत सिंह
“जैसे पुराना कपड़ा उतारकर नया बदला जाता है, वैसे ही मृत्यु है । मैं उससे डरूंगा नहीं, भागूंगा नहीं । कोशिश करूंगा कि पकड़ा जाऊं पर यूं ही नहीं कि पुलिस आई और पकड़ ले गई । मेरे पास एक तरीका है कि कैसे पकड़ा जाऊं । मौत आएगी, आएगी ही पर मैं अपनी मौत को इतनी महंगी और भारी बना दूंगा कि ब्रिटिश सरकार रेत के ढेर की तरह उसके बोझ से ढक जाए ।”~ भगत सिंह
“हमें धैर्यपूर्वक फांसी की प्रतीक्षा करनी चाहिए । यह मृत्यु सुंदर होगी, परंतु आत्महत्या करना, केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देना तो कायरता है । मैं आपको बताना चाहता हूं कि आपत्तियां व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली हैं ।“ ~ भगत सिंह (सुखदेव को लिखे एक पत्र से)”
“दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उलफत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए वतन आएगी ।”~ भगत सिंह
“मजिस्ट्रेट साहब, आप भाग्यशाली हैं कि आज आप अपनी आखों से यह देखने का अवसर पा रहे हैं कि भारत के क्रांतिकारी किस प्रकार प्रसन्नतापूर्वक अपने सर्वोच्च आदर्श के लिए मृत्यु का आलिंगन कर सकते हैं । (मृत्यु पूर्व)” ~ भगत सिंह
“बाबाजी, मैंने जीवन में कभी वाहे गुरु को याद नहीं किया । कई बार तो मैंने देश की अवनति और लोगों के दुख के लिए उन्हें दोषी ठहराया है । अब जब मौत मेरे सामने खड़ी है वाहे गुरु की अरदास करूं तो वह कहेगा कि मैं बहुत डरपोक और बेइमान आदमी हूं । अब मुझे इस संसार से वैसे ही विदा होना जाने दो जैसा मैं हूं । मेरी क्रांति यह नहीं रहेगी कि भगत सिंह कायर था और उसने अपनी मौत से घबराकर वाहे गुरु को याद किया था ।”~ भगत सिंह
“अपने दुश्मन से बहस करने के लिये उसका अभ्यास करना बहोत जरुरी है।”~ भगत सिंह
“क्रांति लाना किसी भी इंसान की ताकत के बाहर की बात है। क्रांति कभी भी अपनेआप नही आती। बल्कि किसी विशिष्ट वातावरण, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों में ही क्रांति लाई जा सकती है।”~ भगत सिंह
“इंसानों को कुचलकर आप उनके विचारो को नही मार सकते।”~ भगत सिंह
“भगत सिंह भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। वह अपने देशप्रेम के लिए आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श हैं।”~ भगत सिंह
“मेरा धर्म सिर्फ देश की सेवा करना है।”~ भगत सिंह
“मेरा जीवन एक महान लक्ष्य के प्रति समर्पित है – देश की आज़ादी। दुनिया की अन्य कोई आकषिर्त वस्तु मुझे लुभा नहीं सकती।“ ~ भगत सिंह
“सर्वगत भाईचारा तभी हासिल हो सकता है जब समानताएं हों – सामाजिक, राजनैतिक एवं व्यक्तिगत समानताएं।“ ~ भगत सिंह
“दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्ठी से भी खूशबू-ए-वतन आएगी।“ ~ भगत सिंह
“इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है।“ ~ भगत सिंह
“क्रांतिकारी सोच के दो आवश्यक लक्षण है – बेरहम निंदा तथा स्वतंत्र सोच।“ ~ भगत सिंह
“मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्वकांक्षा, आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ पर ज़रूरत पड़ने पर मैं ये सब त्याग सकता हूँ और वही सच्चा बलिदान है।“ ~ भगत सिंह
“व्यक्ति की हत्या करना सरल है परन्तु विचारों की हत्या आप नहीं कर सकते।“ ~ भगत सिंह
“महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।“ ~ भगत सिंह
“बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते हैं। क्रान्ति की तलवार विचारों के धार बढ़ाने वाले पत्थर पर रगड़ी जाती है।“ ~ भगत सिंह
“लिख रह हूँ मैं अंजाम जिसका कल आगाज़ आएगा… मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा।“ ~ भगत सिंह
“यदि बहरों को सुनाना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा।“ ~ भगत सिंह
“सिने पर जो ज़ख्म है, सब फूलों के गुच्छे हैं, हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं।“ ~ भगत सिंह