कोरबा (IP News). हाल ही में केन्द्र सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव संबंधी तीन बिल संसद में पारित कराए हैं। बदलाव की मुखालफत भी हो रही है तो कुछ प्रावधानों को सराहा भी जा रहा है। अब तक कंपनियों के लिए स्वतंत्रता पूर्वक किसी को नौकरी पर रखने या निकालने के लिए 100 या उससे कम कर्मचारियों की सीमा थी। यानी ऐसी कंपनियां, जिनमें कर्मचारियों की संख्या 100 या उससे ज्यादा थी, उन्हें किसी भी कर्मचारी को नौकरी से निकालने या कंपनी बंद करने से पहले सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी।
इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड 2020 में इस सीमा को बढ़ाकर 300 कर दिया गया है। यही नहीं, पहले यूनियनों के लिए हड़ताल पर जाने से 14 दिन से लेकर छह हफ्ते तक पहले इसका नोटिस देना अनिवार्य था। अब इस समयावधि को बढ़ाकर 60 दिनों तक कर दिया गया है। 1991 के उदारीकरण के बाद से देश की अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी कई गुना बढ़ चुकी है।
सरकारें न केवल निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नई-नई नीतियां लाती रही हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था के जिस मॉडल को भारत 1991 के बाद से फॉलो कर रहा है, उसकी सफलता इस बात पर नहीं टिकी कि कोई कर्मचारी किसी एक कंपनी में कितने लंबे समय तक काम कर सकता है, बल्कि इस बात पर टिकी है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी योग्यता के मुताबिक कितनी जल्दी नई नौकरी मिल सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि “ईज ऑफ डुईंग बिजनेस” को बढ़ाकर इस स्तर पर ले जाया जाए, जहां कोई भी उद्यमी नई कंपनी खोलने या बंद करने में सहजता अनुभव करे, लेकिन निजी क्षेत्र में यदि कारोबार मुनाफे का न हो, तो कर्मचारियों को वेतन दे पाना संभव नहीं।
इसलिए सरकार का जोर, कारोबार के लिए अनुकूल माहौल पैदा करना होना चाहिए, जिससे उद्यमी एक लाभप्रद कारोबार चलाएं और स्वाभाविक तौर पर जब उनका कारोबार बढ़ेगा तो उन्हें और ज्यादा कर्मचारियों की आवश्यकता होगी और नौकरी के अवसर बढ़ेंगे। यदि कारोबार ही न बढ़े तो किसी भी तरह से सरकार किसी उद्यमी को इस बात के लिए मजबूर नहीं कर सकती कि वह किसी कर्मचारी को नौकरी से न निकाले।
पहले 2008 के बाद का सब-प्राइम संकट और अभी हाल ही में आया कोरोना संकट- ये इस बात के प्रमाण हैं कि निजी क्षेत्र को नौकरियां खत्म करने, वेतन में कटौती करने जैसे कदम उठाने से रोका नहीं जा सकता। यानी कुल मिलाकर पूर्ववर्ती कानून श्रमिकों-कर्मचारियों की नौकरियां बचाने में तो कोई खास मदद नहीं कर पा रहा था। पिछले 5 वर्षों में भारत ने “ईज ऑफ डुईंग बिजनेस” की लिस्ट में 79 स्थानों की छलांग लगाई है और 142वें से 63वें स्थान पर आ गया है। भारत सरकार उम्मीद कर रही है कि श्रम कानूनों में लाए गये इस सुधार से देश को इस सूची में 10वें स्थान के नीचे ले जाने के उसके लक्ष्य में बड़ी कामयाबी मिलेगी। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि भारत अपने कम अवरोधात्मक कानूनों के जरिए 28 लाख नई नौकरियां पैदा कर सकता है, और वह भी संगठित क्षेत्र में अच्छी नौकरियां।
24 सितंबर को हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्मचारियों की सीमा को 100 से बढ़ाकर 300 करने के कानून का असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के हितों की सुरक्षा श्रम कानून सुधारों के तहत पारित दो अन्य विधेयकों का महत्व श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के लिहाज से ऐतिहासिक है। पहली बार देश के सभी श्रमिकों, कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया गया है। अब तक यह सुरक्षा सिर्फ संगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों-कर्मचारियों को ही हासिल थी