नई दिल्ली। निजी अस्पतालों में सिर्फ लालच के लिए देश में लाखों महिलाओं का नॉर्मल डिलीवरी की जगह जबरदस्ती सीजेरियन सेक्शन कर दिया जाता है। इसके कारण हर साल भारतीय परिवारों को 5,000 करोड़ रुपये की एक्सट्रा चपत लगती है।जानकारी के मुताबिक सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम, सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम और नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) की रिपोर्ट्स में दिए गए डेटा के विश्लेषण में यह बात सामने आई है। इन रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2018 में भारत के निजी अस्पतालों ने नॉर्मल डिलवरी से 28.5 लाख ज्यादा सीजेरियन बर्थ किए गए है। इस प्रक्रिया में औसतन 18000 रुपये का अतिरिक्त खर्च आता है। जिसके कारण हर साल होने वाले एकस्ट्रा 28.5 लाख सीजेरियन से भारतीय परिवारों को 5130 करोड़ रुपये की अतिरिक्त चपत लगती है।
सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2018 में भारत में लगभग 2.6 करोड़ बच्चों का जन्म हुआ जिसमें से ग्रामीण इलाकों में जन्म दर 21.6 रहा वहीं शहरी इलाकें में जनिम दर 16.7 रहा। 1.3 की कुल 66 फीसदी आबादी वाले देश में करीब में 86 करोड़ ग्रामीण इलाकों में और 44.3 करोड़ लोग शहरी इलाकों में रहते है। अगर इन आंकड़ों को जन्म दर में लागू किया जाए तो साल 2018 में ग्रामीण इलाकों में 1.86 करोड़ और शहरी इलाकों में 74 लाख बच्चों ने जन्म लिया।
एनएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में 21.3 फीसदी और शहरी इलाकों में 47.8 फीसदी बच्चों का जन्म निजी अस्पतालों में हुआ। बता दें कि साल 2018 में कुल 75 लाख बच्चों ने निजी अस्पतालों में जन्म लिया। जिसमें से निजी अस्पतालों में सीजेरियन सेक्शन रेट 55 फीसदी रहा। देखा जाए तो निजी अस्पतालों में 28.5 लाख से ज्यादा बच्चे सिजेरियन सेक्शन से जन्में है। इन रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में सीजेरियन डिलीवरी का खर्च ये बताता है कि ग्रामीण इलाकों में सीजेरियन पर औसतन 16475 रुपये और शहरी इलाकों में 19548 रुपये का अतिरिक्त खर्च आता है।