नई दिल्ली: भारत न केवल हाइड्रोक्‍सीक्‍लोरोक्‍वीन बल्कि पैरासिटामोल के निर्माण के लिए मांग में है, इन दोनों दवाइयों से कोविड-19 के रोगियों के इलाज में कुछ हद तक मदद संभव हैं.

भारत हर महीने 5,600 मीट्रिक टन पेरासिटामोल का उत्पादन करता है, जबकि घरेलू आवश्यकता केवल 200 मीट्रिक टन है. इसका बाकी हिस्सा इटली, जर्मनी, यूके, यूएस, स्पेन और कनाडा जैसे देशों को निर्यात किया जाता है, जिसकी
हर साल की अनुमानित 730 करोड़ रुपये राशि है.

ब्रिटेन के उच्चायुक्त जान थॉम्पसन ने ट्विटर पर मोदी को धन्यवाद देते हुए कहा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक सहयोग महत्वपूर्ण है और कहा कि यूके और भारत का एक साथ काम करने का ट्रैक रिकॉर्ड है.

यूके ने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन सहित कोविड-19 संक्रमण के 60,000 से अधिक मामलों को दर्ज किया है.

भारत अन्य देशों जैसे कि दक्षिण कोरिया, अमेरिका और कनाडा से पैरासिटामोल की आपूर्ति के लिए सवाल प्राप्त कर रहा है.

फार्मास्युटिकल्स विभाग के एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘हम श्रीलंका और यूरोप सहित दुनिया भर में दवा के लिए सवाल प्राप्त कर रहे हैं. हालांकि, वर्तमान में दवा का निर्यात प्रतिबंधित है और निर्यात अनुमति की आवश्यकता है.’

पिछले सप्ताह, भारत हाइड्रोक्‍सीक्‍लोरोक्‍वीन को निर्यात करने के अपने प्रतिबंधों को लेकर सुर्खियों में था, लेकिन बाद में आंशिक रूप से उन्हें हटा दिया गया.

पैरासिटामोल क्यों?

पैरासिटामोल क्रोसिन, कालपोल और डोलो जैसी ब्रांडेड दवाओं के लिए एक सक्रिय फ़ार्मास्युटिकल घटक (एपीआई, कच्ची सामग्री का उपयोग दवाओं के निर्माण के लिए) है.

हालांकि, हाइड्रोक्‍सीक्‍लोरोक्‍वीन के विपरीत, जिसके लिए भारत एक आत्मनिर्भर उत्पादन प्रक्रिया चलाता है, चीन के हुबेई से पैरासिटामोल के उत्पादन के लिए प्रमुख उत्पादन सामग्री का आयात करता है.

जबकि पैरासिटामोल दुनिया भर में सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) और एंटीपीयरेटिक (बुखार की दवा) में से एक है, उच्च मांग के कारण आपूर्ति कम हुई है. इसका उपयोग कोविड-19 के लक्षणों का इलाज करने के लिए किया जा रहा है, जिसमें बुखार और शरीर में दर्द शामिल हैं.

विश्व स्तर पर, वर्तमान में कोरोनावायरस से संक्रमित 1.21 मिलियन से अधिक लोग हैं.

भारत में स्थिति

भारत में एपीआई का उत्पादन करने वाले शीर्ष कंपनी हैदराबाद स्थित श्रीकृष्ण फार्मास्युटिकल्स, ग्रेन्यूल्स इंडिया और अहमदाबाद स्थित फ़ार्मसन हैं.

रिसर्च फर्म आईक्युवीआईए के अनुसार, ब्रांडेड पैरासिटामोल के लिए घरेलू बाजार का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा जीएसके के कालपोल और माइक्रो लैब के डोलो के बीच साझा किया गया है.

पैरासिटामोल के लिए भारत में कुल संयोजनों सहित बाजार 3,600 करोड़ रुपये का है, जिसमें सादे पैरासिटामोल का बाजार लगभग 1,300 करोड़ रुपये का है. इसमें लगभग 550 करोड़ रुपये की गोलियां, 410 करोड़ रुपये के तरल पदार्थ और 360 करोड़ रुपये मूल्य के इंजेक्शन शामिल हैं.

आईक्युवीआईए के अनुसार भारत में हर साल पैरासिटामॉल की 545 करोड़ टैबलेट- 37 करोड़ स्ट्रिप्स प्रत्येक की 15 गोलियों के साथ बिक्री करता है.

दवा उद्योग ने केंद्र सरकार को आश्वासन दिया है कि भारत के पास अगले 5-6 महीनों में पेरासिटामोल का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त स्टॉक है.

पैरासिटामोल निर्यात पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया

7 अप्रैल को सरकार ने कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित देशों को पैरासिटामोल और एचसीक्यू के लाइसेंस की अनुमति दी. इसका मतलब है कि कंपनियों को निर्यात करने के लिए लाइसेंस के रूप में सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी.

विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘महामारी के मानवीय पहलुओं के मद्देनजर यह निर्णय लिया गया है कि भारत हमारे सभी पड़ोसी देशों, जो हमारी क्षमताओं पर निर्भर हैं, को उचित मात्रा में पैरासिटामोल और एचसीक्यू को लाइसेंस देगा. हम कुछ देशों को भी इन आवश्यक दवाओं की आपूर्ति कर रहे हैं जो महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.’

फरवरी में भारत ने 12 अन्य एपीआई के साथ-साथ एंटीबायोटिक, विटामिन और हार्मोन की गोलियों के साथ पेरासिटामोल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है.

 

 

source : theprint

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